एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आधि।कबिरा संगत साधु की हरे कोटि अपराध।सत्संग का एक पल एक घड़ी भी बहुत होती है।संत के सानिध्य में हमे अपने अपराध दिखाई देने लगते हैं।और न सिर्फ दिखते हैं वो नष्ट भी होना प्रारंभ कर देते हैं। संत सानिध्य का फल अनंत है। यदि आपको किसी सच्चे संत की सेवा का अवसर प्राप्त होता है तो आपके कोटी जन्मों के अपराध मोक्ष हो जाते हैं। क्योंकि संत भगवान को प्रिय होता है। उसकी सेवा ईश्वर की सेवा से कम नहीं है। जीवन में वेपल अनमोल है जो किसी संत के सानिध्य में गुजरे हैं। संत दर्शन ईश्वर दर्शन से कम नहीं। साधु की कभी अवज्ञा नहीं करनी चाहिए। रामचरितमानस में उल्लेख है साधु अवज्ञा करफल ऐसा। जा रही नगर अनाथ कर जैसा। सत्संग तो भगवान की कृपा से ही प्राप्त होता है अगर आप संत के सानिध्य में हैं तो इसे ईश्वर की कृपा मानना चाहिए। मानस कार ने कहा है बिनु सत्संग विवेक न होई राम कृपा बिनु सुलभ न सोई। हनुमान जी जब लंका गए विभीषण के यहां तुलसी का पौधा देखा । उनके मन में विचार उठा जिसके यहां तुलसी का पौधा है वह अवश्य ही साधु होगा और एहि सन हठी करिहौ पहिचानी, साधु ते होय न कारज हानी। संत हृदय मक्खन के समान नरम होता है वे तुरंत द्रवित हो जाते हैं इसीलिए कहा है कि संत हृदय नवनीत समाना। सत्संग का कोई आप सा नहीं छोड़ना चाहिए। क्या जाने कब कौन सा आशीष हमारा जीवन बदल कर रख दे। उनके यथासंभव हृदय से सेवा करनी चाहिए यह हर परिस्थिति में लाभकारी है। जय गुरुदेव