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Lateral Entry: UPSC में लेटरल एंट्री पर केंद्र सरकार की रोक, क्या है सीधी भर्ती मामला?

UPSC में लेटरल एंट्री (Lateral Entry) को लेकर उठी बहस के बीच मंगलवार को केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री के विज्ञापन पर रोक लगाने का आदेश दिया। इस संबंध में केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC चेयरमैन को पत्र लिखकर यह निर्देश दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश पर सीधी भर्ती के विज्ञापनों पर रोक लगाई जाए। इस निर्णय को लेटरल एंट्री के व्यापक पुनर्मूल्यांकन के तहत लिया गया है।

लेटरल एंट्री पर रोक का कारण

पत्र में कहा गया है कि अधिकतर लेटरल एंट्री (Lateral Entry) नियुक्तियां 2014 से पहले की गई थीं और इन्हें एडहॉक स्तर पर किया गया था। प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि लेटरल एंट्री हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप होनी चाहिए, खासकर आरक्षण के प्रावधानों में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।

केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि सामाजिक न्याय की दिशा में संवैधानिक जनादेश को बनाए रखना आवश्यक है ताकि वंचित समुदायों के योग्य उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में उचित प्रतिनिधित्व मिल सके। चूंकि लेटरल एंट्री वाले पद विशेष होते हैं और इनमें आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए इनकी समीक्षा और सुधार आवश्यक है।

विपक्ष की प्रतिक्रिया

केंद्र सरकार के इस कदम पर विपक्ष ने जोरदार प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने कहा कि संविधान और आरक्षण की व्यवस्था की रक्षा हर कीमत पर की जाएगी। उन्होंने कहा कि भाजपा की Lateral Entry जैसी साजिशों को नाकाम किया जाएगा।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे संविधान की जीत बताते हुए कहा कि कांग्रेस की लड़ाई ने भाजपा के आरक्षण छीनने के मंसूबों पर पानी फेर दिया है।

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी इस फैसले को विपक्षी गठबंधन PDA की जीत बताया और कहा कि भाजपा के षड्यंत्र अब कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। उन्होंने इसे सरकार की एक बड़ी हार बताया।

UPA सरकार पर निशाना

केंद्र सरकार के पत्र में बताया गया कि लेटरल एंट्री (Lateral Entry) का विचार 2005 में UPA सरकार के दौरान आया था। वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में प्रशासनिक सुधार आयोग ने इस संबंध में सिफारिशें की थीं। 2013 में छठे वेतन आयोग ने भी इसी दिशा में सिफारिशें की थीं। केंद्र सरकार ने इसे लेकर UPA सरकार पर निशाना साधा है।

केंद्र सरकार के इस कदम से UPSC में Lateral Entry को लेकर चल रही बहस और तेज हो गई है, और यह मामला अब राजनीतिक चर्चा का मुख्य विषय बन चुका है।

Lateral Entry: 17 अगस्त का आदेश

17 अगस्त को UPSC ने एक विज्ञापन जारी किया था, जिसमें लेटरल एंट्री के माध्यम से 45 जॉइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल की भर्तियों की घोषणा की गई थी। लेटरल एंट्री के तहत उम्मीदवारों को UPSC की परीक्षा दिए बिना ही भर्ती किया जाता है, जिससे उन्हें आरक्षण के नियमों का लाभ नहीं मिलता है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस विज्ञापन का विरोध करते हुए आरोप लगाया था कि लेटरल एंट्री के माध्यम से महत्वपूर्ण पदों पर भर्ती कर SC, ST और OBC वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है।

इस विवाद के बीच, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सफाई दी और कहा कि नौकरशाही में लेटरल एंट्री (Lateral Entry) कोई नई बात नहीं है। उन्होंने बताया कि 1970 के दशक से ही कांग्रेस की सरकारों के दौरान भी लेटरल एंट्री होती रही है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया को इस तरह की पहलों के प्रमुख उदाहरण बताया।

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Pradeep Pal
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प्रदीप पाल, पिछले छह सालों से डिजिटल मीडिया इंडस्ट्री में एक्टिव हैं. इस दौरान इन्होंने अलग-अलग कई न्यूज़ पोर्टल्स पर काम किया. मूल रूप से हरदोई के रहने वाले हैं. बिजनेस के साथ ही राजनीति, शिक्षा, मनोरंजन, लाइफस्टाइल और सरकारी योजनाओं की खबरों में ख़ास रूचि है.
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