होमदेशTokyo-Olympics: नीरज चोपड़ा के भाले ने माँ भारती के भाल पर स्वर्ण...

Tokyo-Olympics: नीरज चोपड़ा के भाले ने माँ भारती के भाल पर स्वर्ण तिलक किया

spot_img

131 करोड़ भारतीयों की उम्मीदें एक भाले की नोक पर टिकी हुई थीं। नीरज चोपड़ा के भाले पर। सोने की तलाश में टोक्यो पहुंचे बजरंग पुनिया कांसे पर टिक गए थे। अदिति अशोक भी गोल्फ में बस मुहाने पर ठिठक गई थीं। हॉकी में महिलाओं के हौसले और पदक से कुछ दूर रह जाने के भावुक क्षणों में बहे आंसू सभी को नम कर चुके थे।

उसके ऊपर करोड़ों भारतीयों की उम्मीदों का बोझ बढ़ता जा रहा था। इस भार को साझा करने की बेहतरीन कोशिश मीराबाई चानू ने की पर वो चांदी पर रुक गई। सिंधु की शटल से भी कांसा ही निकल पाया। 

पहलवान रवि दहिया की सुनहरी उम्मीदें भी चांदी की चमक में बदल गईं। लवलीना के मुक्के से दमका कांसा सुकून भी दे रहा था और भविष्य की उम्मीद भी जगा रहा था। पर सोना तो सोना होता है। और सोने की चिड़िया रहे इस देश से बेहतर इसकी चमक को कौन समझ सकता है!! तमाम उपलब्धियों के बीच एक अजीब सी कसमसाहट बाकी थी।

एक प्यास, खेलों के उस महाकुंभ में भारत के राष्ट्र गीत की धुन सुन लेने की प्यास, एक बेताबी अपने तिरंगे को सबसे ऊपर चढ़ते हुए देखने की। जब दुनिया के हमसे छोटे देश ये कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं? ओलंपिक में एक समय हॉकी ने ही सोने के तमगों से माँ भारती का अभिषेक किया है। फिर व्यक्तिगत स्वर्ण पदक अभिनव बिंद्रा लेकर आए। लगा कि ये सिलसिला चल पड़ेगा। पर तेरह साल लग गए हैं अगले स्वर्ण तिलक के लिए। 

नीरज चोपड़ा के भाले ने माँ भारती के भाल पर स्वर्ण तिलक किया है। ये देश के 131 करोड़ लोगों की आकांक्षाओं का सम्मान तो है ही, पर ये पदक इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये भारत में खेलों को लेकर एक नई संस्कृति के विकास में बहुत महत्वपूर्ण योगदान देगा।

इनकी तरह के अनगिनत खिलाड़ी किन संघर्षों से गुजर रहे होते हैं, कैसे अपने सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे होते हैं, ये कोई नहीं जान पाता। ऐसी कितनी ही कहानियाँ हैं जो अनसुनी ही रह जाती हैं।  नीरज चोपड़ा ने मेहनत और संघर्ष की उन्हीं कहानियों को सुनहरी आवाज़ दी है।

 रोजगार सम्बधित ख़बरों के लिए क्लिक करें

spot_img
- Advertisment -

ताज़ा ख़बरें