पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हुए भारत के सफल सैन्य अभियान ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने न सिर्फ अपने तत्काल सैन्य उद्देश्यों को हासिल किया, बल्कि भारतीय रक्षा क्षमताओं की पाकिस्तान पर निर्णायक बढ़त को भी दुनिया के सामने सिद्ध कर दिया।
इस चार दिनी ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली की शानदार सफलता सबसे अधिक चर्चा में रही, जिसने लगभग हर incoming मिसाइल और ड्रोन को निष्क्रिय कर दिया। लेकिन इसके अलावा कई अन्य प्रणालियों और तकनीकों — जिनमें से कई पूरी तरह स्वदेशी हैं — ने भी युद्धक्षेत्र में भारत को निर्णायक बढ़त दिलाई।
हालांकि भारत ने अब तक ऑपरेशन सिंदूर में इस्तेमाल हुए प्लेटफॉर्म्स, हथियारों, सेंसरों और राडारों का आधिकारिक तौर पर खुलासा नहीं किया है, लेकिन कुछ सेवारत और पूर्व सैन्य अधिकारियों एवं वैज्ञानिकों ने बातचीत में उन तकनीकी पहलुओं की जानकारी दी जो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान प्रमुखता से उभरकर सामने आए।
इन विशेषज्ञों का कहना है कि इस सफलता के पीछे वर्षों से किए गए अनुसंधान और निवेश का योगदान है, जिसमें अंतरिक्ष तकनीक, एरोनॉटिक्स, एवियोनिक्स, मिसाइल विकास और हथियार प्रणाली जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
ऑपरेशन सिंदूर और नेविगेशन में बेमिसाल सटीकता
ऑपरेशन सिंदूर की सबसे उल्लेखनीय विशेषता थी — गज़ब की सटीकता, जिससे भारत ने अपने लक्ष्यों को निशाना बनाया, जो कि पाकिस्तान की गहराई में स्थित थे। इससे यह साबित हुआ कि भारत न केवल सैन्य उद्देश्य हासिल कर रहा है, बल्कि अत्यंत ज़िम्मेदारी से भी काम कर रहा है, ताकि आम नागरिकों की क्षति न हो।
7 मई की सुबह जब भारत ने पाकिस्तान और पीओके में स्थित 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, तब मिसाइलों ने परिसर के अंदर मौजूद विशिष्ट इमारतों को बेहद सटीकता से ध्वस्त किया — आस-पास की संरचनाएं पूरी तरह सुरक्षित रहीं। इसी तरह 10 मई की रात भारत ने पाकिस्तान के अंदर कम से कम 8 प्रमुख एयरबेस पर प्रहार किया।
इस स्तर की सटीकता नेविगेशन और गाइडेंस सिस्टम के अत्याधुनिक संयोजन से संभव हो पाई, जिसमें ग्राउंड बेस और सैटेलाइट आधारित दोनों प्रकार की तकनीकें शामिल थीं।
एक पूर्व DRDO निदेशक के अनुसार, “ऑपरेशन सिंदूर की सबसे बड़ी तकनीकी खासियत थी इसकी बेमिसाल सटीकता। यह क्षमता कई वर्षों की स्वदेशी R&D का परिणाम है जो DRDO, ISRO और अन्य संस्थानों में की गई है।”
उन्होंने बताया कि ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें, जो संभवतः इस ऑपरेशन सिंदूर में इस्तेमाल हुईं, आज दुनिया के सबसे बेहतरीन गाइडेंस सिस्टम से लैस हैं।
भारत की अपनी NavIC (Navigation with Indian Constellation) प्रणाली, जिसमें उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों — जैसे कि Cartosat, RISAT और EOS — का साथ होता है, उपग्रहों से मिली जानकारी के आधार पर 10 से 20 सेमी तक की स्थिति सटीकता प्रदान करती है।
इन सैटेलाइट्स के चलते भारत की मिसाइलें sub-metre precision से अपने लक्ष्य को भेदने में सक्षम हैं। DRDO की “अनुसंधान चिंतन शिविर” में 2023 में ‘गाइडेंस और नेविगेशन’ को 75 प्राथमिक तकनीकी क्षेत्रों में शामिल किया गया था।
घातकता और विनाशकारी क्षमता
जिन आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया, वहां पूरी तरह से तबाही और एयरबेस पर बने विशाल गड्ढों ने यह साबित कर दिया कि भारतीय हथियार न केवल सटीक थे, बल्कि अत्यंत घातक भी थे।
एक पूर्व DRDO निदेशक के अनुसार, “इन हथियारों की घातकता और विश्वसनीयता से यह साबित होता है कि हमारे प्रोपल्शन सिस्टम, वॉरहेड्स और फ्यूज़ बेहद कुशल हैं।”
उन्होंने बताया कि डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा शुरू किए गए Integrated Guided Missile Development Programme की बदौलत DRDO ने इस क्षेत्र में जबरदस्त प्रगति की है।
वर्तमान में Deep Penetration Warheads, Green Explosives, और Directed Energy Weapons (DEWs) जैसे आधुनिक हथियारों पर काम चल रहा है। इन लेज़र-आधारित हथियारों की मदद से दुश्मन के ड्रोन जैसे लक्ष्यों को चुपचाप निष्क्रिय किया गया, जिसकी संभावना विशेषज्ञ जता रहे हैं।
गौरतलब है कि 2022 में रक्षा मंत्रालय ने DEW को 18 प्रमुख रणनीतिक क्षेत्रों में शामिल किया था, और इस वर्ष की गणतंत्र दिवस परेड में DRDO ने इसे प्रदर्शित भी किया।
भारत की स्वदेशी एयर डिफेंस प्रणाली
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंजाब के आदमपुर एयरफोर्स स्टेशन पर S-400 मिसाइल लॉन्चर के पास तस्वीर खिंचवाकर इसकी अहमियत को दर्शाया है। लेकिन भारत की वायु रक्षा प्रणाली S-400 पर ही निर्भर नहीं है। इसमें कई स्वदेशी तकनीकें भी शामिल हैं।
इनमें प्रमुख हैं — राजेन्द्र रडार, रोहिणी 3D रडार, Low-Level Lightweight रडार और Low-Level Transportable रडार (LLTR) — जिन्होंने दुश्मन के ड्रोन, मिसाइल और एयरक्राफ्ट की ट्रैकिंग में अहम भूमिका निभाई।
एक DRDO वैज्ञानिक के अनुसार, “इन स्वदेशी राडारों ने युद्धक्षेत्र में सभी सेनाओं के लिए अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा DRDO में रडारों पर AI आधारित रिसर्च, foliage penetration, stealth detection रडार और cognitive टेक्नोलॉजी पर भी कार्य जारी है।”
नई SAMAR (Surface to Air Missile for Assured Retaliation) प्रणाली और आकाश मिसाइल ने 12 किलोमीटर तक के हवाई खतरों को बेअसर करने में सफलता पाई।
पुराने Bofors एंटी-एयरक्राफ्ट गन को भी उन्नत किया गया है — जिसमें रडार, electro-optical sensors और auto-tracking सिस्टम जोड़े गए हैं। ये गन जम्मू-कश्मीर और LAC के पास तैनात की गईं।
मानवरहित प्रणालियों की पहली बड़ी भूमिका
यह पहला भारत-पाक युद्ध था जिसमें ड्रोन और अन्य मानवरहित प्रणालियों ने इतनी बड़ी भूमिका निभाई।
भारतीय ड्रोन पाकिस्तान के शहरों जैसे लाहौर में गहराई तक घुसे और रणनीतिक ठिकानों को नष्ट किया, जबकि पाकिस्तानी ड्रोन हमले अपेक्षाकृत नाकाम साबित हुए।
NAL (National Aerospace Laboratories) के निदेशक ने कहा, “भविष्य के युद्ध ड्रोन और मानव-रहित प्रणालियों के सहारे लड़े जाएंगे, जिन्हें मानव-चालित सिस्टम से तालमेल में काम करना होगा।”
उन्होंने कहा, “हमने ड्रोन टेक्नोलॉजी में हाल के वर्षों में काफी प्रगति की है, लेकिन अब ज़रूरत है बड़े पैमाने पर मैन्युफैक्चरिंग और आत्मनिर्भर सप्लाई चेन की।”
ऑपरेशन सिंदूर ने दिखा दिया कि भारत अब न केवल रक्षा के मामले में आत्मनिर्भर बन चुका है, बल्कि तकनीकी रूप से भी पाकिस्तान पर निर्णायक बढ़त बना चुका है। स्वदेशी तकनीकों की यह ताकत भविष्य के युद्धों में भारत की सबसे बड़ी पूंजी बनने जा रही है।