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‘स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी’: समानता के लिए काम करने वाले संत रामानुजाचार्य को एक सच्ची श्रद्धांजलि

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HBN: 11वीं सदी के सुधारक और वैष्णव संत, श्री रामानुज (रामानुजाचार्य)की 216 फीट ऊंची ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी’ पर काम तेजी से चल रहा है, जिसका अनावरण पांच फरवरी को हैदराबाद में पीएम मोदी करेंगे।गौरतलब है कि इस प्रतिमा को ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी’ नाम दिया गया है। यह प्रतिमा हैदराबाद के बाहरी इलाके शमशाबाद में 45 एकड़ के परिसर में स्थित है।

‘समानता की मूर्ति'(Statue of Equality), जैसा कि इसे कहा जाता है, श्री रामानुज की 1,000 वीं जयंती को चिह्नित करने के लिए स्थापित किया जा रहा है।यह चीन में एरोस्पन कॉरपोरेशन द्वारा सोने, चांदी, तांबे, पीतल और जस्ता के संयोजन पंचलोहा से बनाया गया था और भारत भेज दिया गया था।यह संत के बैठने की मुद्रा में विश्व की दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति है।

स्मारक श्री वैष्णव परंपरा के 108 “दिव्य देशम” ‘मॉडल मंदिर’ से घिरा होगा (जैसे तिरुमाला, श्रीरंगम, कांची, अहोभिलम, बद्रीनाथ, मुक्तिनाथ, अयोध्या, बृंदावन, कुंभकोणम और अन्य)।’देवताओं की मूर्तियों’ और संरचनाओं का निर्माण मौजूदा मंदिरों के आकार में किया गया था।मंदिर की खासियत ये है कि यहां रामानुजाचार्य की दो मूर्तियां होंगी और दोनों की ही बनावट अलग तरह से की गई है। पहली मूर्ति पंचधातु से बनाई गई है और यह 216 फीट ऊंची है। इसे स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी नाम दिया गया है।

प्रतिमा बनाने में 1800 टन से अधिक पंच लोहा का उपयोग किया गया है । पार्क के चारों ओर 108 दिव्यदेशम या मंदिर बनाए गए हैं । पत्थर के खंभों को राजस्थान में विशेष रूप से तराशा गया है। दूसरी प्रतिमा मंदिर के गर्भगृह में रखी जाएगी, जो संत के 120 सालों की यात्रा की याद में 120 किलो सोने से बनाई गई है। खास बात यह है कि इस अंदरुनी कमरे का उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 13 फरवरी को करेंगे।

हैदराबाद के श्रीराम नगर जीवा आश्रम के समीप बनने वाली यह मूर्ति दुनिया को समानता का संदेश देगी। इसके निर्माण में कुल एक हजार करोड़ की लागत आएगी।एक हजार करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट को सिर्फ भक्तों द्वारा दिए गए दान से ही पूरा किया गया है।

रामानुजाचार्य की 1000वीं जयंती उत्सव के मौके पर दो फरवरी से कार्यक्रम शुरू होंगे। इन ‘समारोहम’ के तहत सामूहिक मंत्र-जाप और 1035 यज्ञ जैसी आध्यात्मिक गतिविधियों का आयोजन तय किया गया है। इस आयोजन को रामानुज सहस्राब्दी समारोहम नाम दिया गया है।भक्त मंदिर में पांच भाषाओं में इतिहास सुन सकेंगे । मंदिर में दर्शनार्थियों को 5 भाषाओं में ऑडियो गाइड मिल सकेगी। अंग्रेजी, हिंदी, तमिल, तेलुगु सहित एक और भाषा इसमें शामिल होगी। यहां हर तरह की सुविधा होगी। मंदिर के भीतर रामानुजाचार्य के पूरे जीवन को चित्रों और वीडियो में दिखाया जाएगा। साथ ही, दक्षिण भारत के प्रसिद्ध 108 दिव्य देशम् की रेप्लिका भी इस स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी के चारों ओर बनाई जा रही है।

रामानुजाचार्य स्वामी (Ramanujacharya Swami) का जन्म 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में हुआ था । उनके माता का नाम कांतिमती और पिता का नाम केशवचार्युलु था।भक्तों का मानना है कि यह अवतार स्वयं भगवान आदिश ने लिया था । वैष्णव संत रामानुजाचार्य का जन्म सन 1017 में तमिलनाड़ु में हुआ था। उन्होंने कांची में अलवार यमुनाचार्य से दीक्षा ली थी। श्रीरंगम के यतिराज नाम के संन्यासी से उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली। पूरे भारत में घूमकर उन्होंने वेदांत और वैष्णव धर्म का प्रचार किया। उन्होंने कई संस्कृत ग्रंथों की भी रचना की। उसमें से श्रीभाष्यम् और वेदांत संग्रह उनके सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ रहे। 120 वर्ष की आयु में 1137 में उन्होंने देहत्याग किया।

एक हजार वर्ष पहले रामानुजाचार्य स्वामी ने भारतीय समाज में बदलाव का बिगुल फूंका था। उस वक्त समाज छुआछूत और जाति आधारित बुराइयों से जकड़ा हुआ था। वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पिछड़े लोगों को मंदिर में प्रवेश करवाया था। रामानुजाचार्य स्वामी जी के जन्म के एक हजार वर्ष पूरा होने पर स्टैचू ऑफ इक्वलिटी का निर्माण कराया जा रहा है। यह समानता के लिए काम करने वाले संत को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।रामानुजाचार्य स्वामी ने सबसे पहले समानता का संदेश दिया था। समाज में उनके योगदान को आज तक वो स्थान नहीं मिल पाया, जिसके वो अधिकारी थे। इस मंदिर के जरिए, उनकी समाज के निर्माण में रचनात्मक योगदान को दिखाया जाएगा।

उन्होंने कांची अद्वैत पंडितों के अधीन वेदांत में शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने विशिष्टाद्वैत विचारधारा की व्याख्या की और मंदिरों को धर्म का केंद्र बनाया। रामानुज को यमुनाचार्य द्वारा वैष्णव दीक्षा में दीक्षित किया गया था। उनके परदादा अलवंडारू श्रीरंगम वैष्णव मठ के पुजारी थे। ‘नांबी’ नारायण ने रामानुज को मंत्र दीक्षा का उपदेश दिया। तिरुकोष्टियारु ने ‘द्वय मंत्र’ का महत्व समझाया और रामानुजम को मंत्र की गोपनीयता बरकरार रखने के लिए कहा, लेकिन रामानुज ने महसूस किया कि ‘मोक्ष’ को कुछ लोगों तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, इसलिए वह पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से पवित्र मंत्र की घोषणा करने के लिए श्रीरंगम मंदिर गोपुरम पर चढ़ गए ।

रामानुजाचार्य स्वामी यह साबित करने वाले पहले आचार्य थे कि सर्वशक्तिमान के सामने सभी समान हैं। उन्होंने दलितों के साथ कुलीन वर्ग के समान व्यवहार किया। उन्होंने छुआछूत और समाज में मौजूद अन्य बुराइयों को जड़ से उखाड़ फेंका। स्वामी जी ने सभी को भगवान की पूजा करने का समान विशेषाधिकार दिया। उन्होंने तथाकथित अछूत लोगों को “थिरुकुलथार” कहा इसका अर्थ है “दिव्य जन्म” और उन्हें मंदिर के अंदर ले गए। उन्होंने भक्ति आंदोलन का बीड़ा उठाया और दर्शन की वकालत की जिसने कई भक्ति आंदोलनों का आधार बनाया उन्होंने 120 वर्षों तक अथक परिश्रम करते हुए यह साबित किया कि भगवान श्रीमन नारायण सभी आत्माओं के कर्म बंधन से परम मुक्तिदाता हैं।

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