होमक्राइम1306 ग्राम पंचायतों के पास 78 करोड़ से अधिक धनराशि डंप

1306 ग्राम पंचायतों के पास 78 करोड़ से अधिक धनराशि डंप

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हरदोई :विकास कार्यों के लिए बजट का रोना रोने वाले जनप्रतिनिधियों और सुविधाओं की दरकार के लिए जनप्रतिनिधियों की ड्योढी रगड़ने वाली गांव की जनता दोनों के लिए ही यह खबर महत्वपूर्ण है। अब ग्राम पंचायतों को 34 दिनों में ही 78 करोड़ रुपए खर्च करने हैं। यह बजट ग्राम पंचायतों को एक वित्तीय वर्ष में आवंटित होने वाले कुल बजट का लगभग 35 फीसदी है। यह धनराशि कई महीने से डंप है। चर्चा है कि अब आननफानन में विकास कार्य कराकर सरकारी धन 78 करोड़ से अधिक धनराशि डंप करने की कवायद चल रही है।

पंचायती राज महकमें के रिकार्ड के मुताबिक 2020-21 में जनपद की 1306 ग्राम पंचायतों को कुल 122 करोड़ 19 लाख 6559 रुपए आवंटित किए गए। इसमें से अब तक 43 करोड़ से अधिक की धनराशि विकास कार्यों पर खर्च की जा चुकी है। पर अभी भी राज्य सरकार की ओर से पांचवे वित्त आयोग की अनुशंसा से व केंद्र सरकार की ओर से दिए जाने वाले 15वें वित्त की लगभग 78 करोड़ 73 लाख 53 हजार 359 रुपए ग्राम पंचायतों के बैंक खाते में डंप पड़ी हुई है। वो भी तब जबकि ग्राम पंचायतों का कार्यकाल 25 दिसम्बर को समाप्त हो रहा है। ऐसे में अब ग्राम पंचायतों के पास मात्र 34 दिन का कार्यकाल ही शेष रह गया है। इस दौरान उक्त धनराशि को खर्च कर पाने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।

डीपीआरओ गिरीश कुमार ने बताया शासन के सख्त निर्देश हैं अवशेष बजट से ग्राम पंचायत कार्यालय और सार्वजनिक शौचालय का निर्माण करवाया जाए। इसके बावजूद प्रदेश सरकार की शीर्ष प्राथमिकता में शामिल कार्यों को न करने वाली ग्राम पंचायतों के जिम्मेदारों के विरुद्ध पंचायती राज अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। प्रधानों को निर्देश दिए गए हैं कि वे युद्धस्तर से कार्य कराकर बजट का सदुपयोग करें।

प्रधानी का चुनाव लड़ने के इच्छुक दावेदार भी सक्रिय हो गए हैं। वे भी ऐन चुनाव से पहले कराए जाने वाले कार्यों पर नजर रखे हैं। गुणवत्ता परखने के लिए मौके पर जा रहे हैं। ऐसा करके वे प्रधानों को घेरने के मूड में हैं। यह खींचतान विवाद का कारण भी बन सकती है।

ग्राम पंचायतों में अभी भी तमाम गलियां कच्ची हैं। कई मोहल्लों में तो नाल तक नहीं बनी है। खड़ंजा भी जगह-जगह उखड़ा पड़ा है। यदि जिम्मेदार ध्यान देते तो उपलब्ध कराए गए बजट से कई विकास कार्य कराए जा सकते थे, लेकिन वे उदासीन रवैया अपनाए रहे। बताते हैं कि कुछ जगह पर तो जानबूझकर देरी की गई ताकि अंतिम समय में कागजी कोरम पूरा कर बजट को हड़प सकें।

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