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हमें अपने ऊपर विजय प्राप्त करना हो, तो अपने विचार-धारा में संशोधन करना चाहिए


खटाई पड़ने से अमृत के समान दूध फटकर छार-छार हो जाता है। इसी प्रकार विपरीत दृष्टिकोण रखने के कारण हमारा आनंद से परिपूर्ण जीवन एक कष्टदायक भार बन जाता है। इस संसार में कितनी ही आत्माएं अपने वास्तविक स्वरूप से बहुत दूर हटकर जड़ता के अंधकार में भटक रही है। जीवन को एक प्रकार का भार अनुभव कर रही है। सृष्टि का एक-एक कण चैतन्य आत्मा के आनंद के लिए परमात्मा ने बनाया है, लेकिन दुर्भावनाओं के कारण हम रस को विष में परिवर्तित कर देते हैं। कितने आश्चर्य और दुख की बात है, कि जो सत् है वह असत् में डूबा रहे, जो चित् है वह मूढ़ता और जड़ता में पड़ा है। जो आनंद स्वरूप है वह दुःख दारिद्र्य की कीचड़ में से बाहर न निकल सके। संसार की बाहरी परिस्थितियों पर हम तब तक विजय प्राप्त नहीं कर सकते, जब तक कि अपने ऊपर काबू न कर लें। दिन-रात क्लेश, विपत्ति, गरीबी, बीमारी, मृत्यु, चिंता, पीड़ा का चिंतन करते करते मनुष्य उन्हीं में तन्मय हो जाता है, दूसरी कोई वस्तु सोचने में नहीं आती। हमें अपने ऊपर विजय प्राप्त करनी चाहिए, अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करना चाहिए, अपनी विचारधारा में संशोधन करना चाहिए। जो ऐसा कर लेता है उसकी सारी बाहरी परिस्थितियाँ अनुकूल हो जाती है और हर एक वस्तु और परिस्थिति में आनंद की झांकी दिखाई देती है।

  • अखंड ज्योति नवंबर 1945 पृष्ठ 7
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