Homeसामाजिकमिट्टी को सोना बनाता है गुरु

मिट्टी को सोना बनाता है गुरु

by रामलखन सविता

एक कुम्हार था एक दिन उसने मिट्टी को एकत्र किया फिर उसे कूटकर महीन किया,चलनी से छाना भी कि कहीं रोड़ी तो नही रह गई। छानने के दौरान जो मिट्टी के छोटे छोटे कंकड़ निकले उसे कूटकर महीन किया। पानी मे भिगोकर मिट्टी की गुथाई की,कुम्हार की चोटें खाकर मिट्टी खुद को कोस रही थी कि आखिर उसे ही क्यों दर्द दिया जा रहा है। लेकिन कुम्हार था जो अपने लक्ष्य पर लगा हुआ था। कुम्हार ने मिट्टी की गुथाई के बाद उसे चिकना करने लगा। बार बार वह उंगलियों से मसलकर देखता कि चिकनाई आई कि नही और जब मिट्टी चिकनी हो गई तब उसके कई हिस्से करके एक हिस्से को चॉक पर चढ़ा दिया और चॉक घूमने लगा। चॉक पर रखी मिट्टी भी घूम रही थी और उस मिट्टी पर कुम्हार की उंगलियां चल रहीं थीं। कभी जोर से दबाता तो काफी रुई के मानिंद सहलाता मिट्टी परेशान किस जन्म का बदला ले रहा है कुम्हार,लेकिन कुम्हार तो अपने ही काम मे मगन था। थोड़ी देर में ही उस मिट्टी के लोंदे ने एक घड़े का आकार ले लिया था,कुम्हार ने उसे चॉक से उतारकर धूप में रख दिया था। सूखने के बाद कच्चे घड़े को पकाने के लिए आग के बीच मे कुम्हार ने रख दिया तो मिट्टी तड़प उठी,मन ही मन बोली कि इतनी तकलीफें देने के बाद भी कुम्हार का मन नही भरा जो अब आग पर भी चढ़ा दिया। घड़ा आग पर तपकर पक गया था,पहले से ज्यादा मजबूत। कुम्हार ने उसकी रंगाई पुताई करके उसे बाजार में बेंच दिया,खरीदने वाले ने उस घड़े में पानी भर दिया जो गर्मी में लोगों की प्यास बुझा रहा था। लोग उसकी तारीफ करते तो वह इठलाता जबकि पास में ही लगा मिट्टी का ढेर पानी पड़ने से गीला होकर लोगों के पैरों को गंदा कर रहा था जिससे लोग कोस रहे थे,तब घड़े की मिट्टी ने सोंचा कि अगर कुम्हार ने उसे खोदने से लेकर चॉक पर चढ़ाने और फिर तपाने का काम न किया होता तो शायद उसकी किस्मत भी पड़ोस में पड़ी मिट्टी की तरह होती जिसे लोग कोस रहे होते।
कुछ ऐसा ही हाल जीवन मे गुरु का भी होता है,चाहे वह प्रथम गुरु मां की बात हो या फिर शिक्षा की लौ से प्रकाशित करने वाले दूसरे गुरु शिक्षक की। बचपन मे कई बार बच्चे के भविष्य की खातिर मां कठोर कदम उठाती है तो बच्चे को उसकी ममता नही नही दिखती। गुरु की सख्ती भी छात्र को बुरी लगती है। लेकिन याद वही गुरु रह जाते हैं जिनसे व्यक्ति ने छात्र जीवन मे ज्यादा सजा पाई हो क्योंकि उसकी सजा की बदौलत ही वह आगे कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते हैं। एक गुरु अपने शिष्य का अहित कभी नही सोंच सकता क्योंकि उसे अपने शिष्य से भावनात्मक लगाव हो जाता है। गुरु को भगवान से भी बड़ा कहा गया है,क्योंकि गुरु ही है जो व्यक्ति के जीवन को बदलकर खुशहाल कर देता है।

Pradeep Pal
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प्रदीप पाल, पिछले छह सालों से डिजिटल मीडिया इंडस्ट्री में एक्टिव हैं. इस दौरान इन्होंने अलग-अलग कई न्यूज़ पोर्टल्स पर काम किया. मूल रूप से हरदोई के रहने वाले हैं. बिजनेस के साथ ही राजनीति, शिक्षा, मनोरंजन, लाइफस्टाइल और सरकारी योजनाओं की खबरों में ख़ास रूचि है.
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