कोरोना और निपाह जैसे वायरसों से लड़ाई के बीच भारत ने अब एक और घातक वायरस के खिलाफ बड़ी जीत हासिल की है। देश के वैज्ञानिकों ने चांदीपुरा वायरस के खिलाफ एक प्रभावी दवा विकसित की है, जिससे इस जानलेवा बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकेगा। यह वायरस अब तक भारत के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में सैकड़ों बच्चों की जान ले चुका है, लेकिन आमजन में इसके बारे में जानकारी बेहद कम रही है।
क्या है चांदीपुरा वायरस?
यह वायरस 1965 में महाराष्ट्र के नागपुर जिले के चांदीपुरा गांव में पहली बार सामने आया था और उसी के नाम पर इसे ‘चांदीपुरा वायरस’ कहा गया। यह एक प्रकार का रैब्डोवायरस है जो बालू मक्खी के काटने से फैलता है। यह खासतौर पर 5 से 15 वर्ष तक के बच्चों को अपना निशाना बनाता है।
वायरस से संक्रमित बच्चे को तेज बुखार, उल्टी और बेहोशी जैसे लक्षण दिखते हैं और 24 से 48 घंटे में जान भी जा सकती है। इस वायरस से होने वाली बीमारी को सामान्य भाषा में दिमागी बुखार (एन्सेफलाइटिस) कहा जाता है।
आईसीएमआर की बड़ी सफलता
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के पुणे स्थित राष्ट्रीय वायरोलॉजी संस्थान (NIV) के वैज्ञानिकों ने इस वायरस पर गहन शोध किया और पाया कि फेविपिराविर नामक दवा इसकी वृद्धि को रोकने में प्रभावी है। सेल और एनिमल मॉडल्स पर सफल परीक्षण के बाद पहली बार किसी दवा को चांदीपुरा वायरस के खिलाफ वैज्ञानिक रूप से कारगर माना गया है। अब इस दवा पर मानव परीक्षण की तैयारी शुरू हो गई है।
गुजरात में 2024 में बड़ा प्रकोप
साल 2024 के जून से अगस्त के बीच गुजरात समेत कई राज्यों में चांदीपुरा वायरस का कहर देखने को मिला। इस दौरान 82 लोगों की मौत हुई और 245 से अधिक संक्रमित हुए। यह पिछले दो दशकों में वायरस का सबसे बड़ा हमला माना गया।
बीते वर्षों में मौतों का आंकड़ा डरावना
- 2003-04 में आंध्र प्रदेश में 183, महाराष्ट्र में 114 और गुजरात में 24 मौतें
- 2004 से 2011 तक गुजरात में 31 मौतें और 100 से अधिक संक्रमित
- 2009-11 के बीच अन्य राज्यों में 16 जानें गईं
सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य
इस वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र वे हैं जहां बच्चों में दिमागी बुखार के मामले हर साल सामने आते हैं। इसमें प्रमुख रूप से शामिल हैं:
- महाराष्ट्र
- गुजरात
- मध्य प्रदेश (आदिवासी क्षेत्र)
- छत्तीसगढ़
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- ओडिशा
- बिहार
- झारखंड
- पूर्वी उत्तर प्रदेश
भारत में पहली बार इस खतरनाक वायरस पर दवा की वैज्ञानिक पुष्टि ने उम्मीद की नई रोशनी दी है। यदि मानव परीक्षण सफल रहता है, तो आने वाले वर्षों में सैकड़ों मासूमों की जान इस ‘खामोश हत्यारे’ से बचाई जा सकेगी। भारत की यह उपलब्धि वैश्विक स्वास्थ्य विज्ञान में एक और मील का पत्थर साबित हो सकती है।