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Ranji Trophy 2022 : मध्य प्रदेश ने पहली बार जीता रणजी ट्रॉफी का खिताब, फाइनल में 41 बार की चैंपियन मुंबई को 6 विकेट से हराया

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 बेंगलुरू। मध्य प्रदेश ने रविवार को पांचवें और अंतिम दिन घरेलू क्रिकेट की दिग्गज टीम मुंबई को एकतरफा फाइनल में छह विकेट से हराकर पहली बार रणजी ट्रॉफी खिताब जीतकर इतिहास रचा। कोच चंद्रकांत पंडित ने इसी मैदान पर 23 साल पहले रणजी ट्रॉफी का खिताबी मुकाबला गंवाया था लेकिन इस बार वह चैंपियन टीम का हिस्सा बनने में सफल रहे।

अंतिम दिन मुंबई की टीम दूसरी पारी में 269 रन पर सिमट गई जिससे मध्य प्रदेश को 108 रन का लक्ष्य मिला जिसे टीम ने चार विकेट गंवाकर हासिल कर लिया और रणजी ट्रॉफी का खिताब अपने नाम कर लिया। सत्र में 1000 रन बनाने से सिर्फ 18 रन दूर रहे सरफराज खान (45) और युवा सुवेद पार्कर (51) ने मुंबई को हार से बचाने का प्रयास किया। लेकिन, कुमार कार्तिकेय (98 रन पर चार विकेट) की अगुआई में गेंदबाजों ने मध्य प्रदेश की जीत सुनिश्चित की। कोच के रूप में पंडित का यह रिकॉर्ड छठा राष्ट्रीय खिताब है।

लक्ष्य का पीछा करते हुए मध्य प्रदेश ने हिमांशु मंत्री (37), शुभमन शर्मा (30) और रजत पाटीदार (नाबाद 30) की पारियों की बदौलत 29.5 ओवर में चार विकेट पर 108 रन बनाकर जीत दर्ज की। इस जीत से पंडित की पुरानी यादें ताजा हो गई जब 1999 में इसी चिन्नास्वामी स्टेडियम में उनकी अगुआई वाली मध्य प्रदेश की टीम ने पहली पारी में बढ़त के बावजूद फाइनल गंवा दिया था और पंडित के करियर का अंत निराशा के साथ हुआ। पंडित के मार्गदर्शन में विदर्भ ने भी चार ट्रॉफी (लगातार दो रणजी ट्रॉफी और ईरानी कप खिताब) जीती जबकि उसके पास कोई सुपरस्टार नहीं थे।

रजत पाटीदार को छोड़कर यश दुबे, हिमांशु मंत्री, शुभम शर्मा, गौरव यादव या सारांश जैन जैसे खिलाड़ी भारतीय टीम में जगह बनाने की अभी दावेदार नहीं मौजूदा सत्र में उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। इन सभी ने मिलकर 41 बार के चैंपियन मुंबई को एक और रणजी ट्रॉफी का खिताब से महरूम किया। मध्य प्रदेश ने एक बार फिर साबित किया कि रणजी ट्रॉफी खिताब जीतने लिए आपकी टीम में सुपर स्टार या भारतीय टीम में जगह बनाने के दावेदार होना जरूरी नहीं है।

राजस्थान ने उस समय खिताब जीता जबकि ऋषिकेश कानिटकर और आकाश चोपड़ा उसके साथ थे। विदर्भ ने जब खिताब जीते तो उसके युवा खिलाड़ियों के मार्गदर्शन के लिए वसीम जाफर और गणेश सतीश मौजूद थे। मध्य प्रदेश की टीम अपने दो महत्वपूर्ण खिलाड़ियों आवेश खान और वेंकटेश अय्यर के बिना खेल रही थी लेकिन मुंबई पर भारी पर पड़ी।

वर्ष 2010 के बाद से रणजी ट्रॉफी में कुछ सत्र कर्नाटक का दबदबा रहा लेकिन इसके बाद सिर्फ मुंबई ही एक खिताब जीत पाई जबकि अधिकांश खिताब राजस्थान (दो), विदर्भ (दो), सौराष्ट्र (एक) और मध्य प्रदेश (एक) जैसी टीम ने जीते जिन्हें घरेलू क्रिकेट में कमजोर माना जाता था। यह दर्शाता है कि मुंबई के शिवाजी पार्क, आजाद मैदान या क्रॉस मैदान, दिल्ली और बेंगलुरू या कोलकाता से क्रिकेट अब छोटे शहरों में भी फैल रहा है।

रणजी ट्रॉफी जब शुरू हुई तो मध्य प्रदेश की टीम बनी भी नही थी और तब ब्रिटिश युग के राज्य होलकर ने देश के कई दिग्गज क्रिकेटर दिए जिसमें करिश्माई मुशताक अली और भारतीय क्रिकेट टीम के पहले कप्तान सीके नायुडू भी शामिल रहे।

होलकर 1950 के दशक तक मजबूत टीम थी जिसे बाद में मध्य भारत और फिर मध्य प्रदेश नाम दिया गया। मध्य प्रदेश ने इसके बाद कई अच्छे क्रिकेटर तैयार किए जिसमें स्पिनर नरेंद्र हिरवानी और राजेश चौहान भी शामिल रहे जिनका अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट छोटा लेकिन प्रभावी रहा। अमय खुरसिया ने भी काफी सफलता हासिल की।

मध्यक्रम के बल्लेबाज देवेंद्र बुंदेला दुर्भाग्यशाली रहे क्योंकि वह 1990 और 2000 के दशक में उस समय खेले जब मध्य क्रम में सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण जैसे दिग्गज खेल रहे थे। मध्य प्रदेश की टीम 23 साल पहले पंडित की कप्तानी में फाइनल में खेली थी लेकिन तब उसे हार का सामना करना पड़ा था।

मध्यप्रदेश के बड़े स्कोर में तीन शतकवीरों का रहा योगदान
मुंबई की पहली पारी के 374 रन के जवाब में मध्यप्रदेश ने 536 रन का बड़ा स्कोर खड़ा किया। यश दुबे और शुभम शर्मा और रजत पाटीदार ने शतकीय पारियां खेलीं। दूसरे विकेट के लिए शुभम शर्मा और यश दुबे ने 222 रन की साझेदारी कर मध्यप्रदेश को मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया शुभम शर्मा 116 रन बनाकर आउट हुए।

यश दुबे ने 133 और रजत पाटीदार ने 122 रन की पारी खेली। मुंबई के लिए तुषार देशपांडे ने तीन विकेट और सम्स मुलानी ने पांच विकेट लिए थे। जबकि मोहित अवस्थी को दो विकेट मिले।

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