प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब सवा सौ किलोमीटर की दूरी पर बसा हरदोई यूँ तो अन्य शहरों की तरह एक जिला और एक शहर है लेकिन धार्मिक दृष्टिकोण से हरदोई का कद काफी बढ़ जाता है। जब हिरण्यकश्यप का जिक्र आता है तो लोग भक्त प्रह्लाद को भी श्रद्धा के साथ याद करते हैं,और इसी के साथ हरदोई को भी याद किया जाता है। क्योंकि इसी हरदोई जिसे कालांतर में हरिद्रोही के नाम से पुकारा जाता था। जिलाधिकारी ने आज की पीढ़ी की प्रह्लाद नगरी हरदोई से फिर से रूबरू कराया।
हिरण्यकश्यप का ईश्वर के प्रति दुराभाव और उसके पुत्र के पूरे समर्पण की कहानी की गवाह है यहां की मिट्टी। आतंक जब बढ़ा तो भक्त के विश्वास को हकीकत में बदलने के लिए भगवान ने यहीं नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप को उसके कर्मो का फल दिया था। भक्त प्रह्लाद के समर्पण और विश्वास को आज भी लोग यहां महसूस करते हैं। हरदोई में बना प्रह्लाद कुंड आज आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। हरदोई जिले के जिलाधिकारी पुलकित खरे ने लोगों की मदद से जीर्ण शीर्ण हालात में पड़े प्रह्लाद कुंड का न सिर्फ जीर्णोद्धार कराया बल्कि आसपास जिलों में एक पहचान भी दिलाई। प्रह्लाद कुंड केवल एक कुंड या स्थल न होकर आस्था का प्रतीक भी है,यहां पहुँचकर आस्थावान लोगों की आस्था और प्रबल हो जाती है कि ईश्वर के प्रति अगर आपका पूर्ण समर्पण हो तो भगवान कभी भी और कहीं भी किसी रूप में आपकी मदद को आ सकते हैं। जैसे भक्त प्रह्लाद की मदद को नृसिंह अवतार के रूप में आए थे। आज की पीढ़ी शायद यह भूल चुकी थी कि भक्त प्रह्लाद की स्मृतियां संजोए कोई प्रह्लाद कुंड भी है।