देश की आजादी के 74 साल बाद भी यूपी में न तो बाल विवाह रुका और न ही महिलाओं की स्थिति में कोई खास बदलाव आया है। आज भी 20 से 24 साल की करीब 21 फीसदी युवतियों यानी हर पांचवीं युवती की शादी 18 साल से कम उम्र में हो जाती है। हालांकि यूपी में विभिन्न अभियान के जरिए वर्ष 2026 तक इसे घटाकर 20 फीसदी और वर्ष 2030 तक 19 फीसदी पर लाने की तैयारी है। इसी तरह 15 से 19 साल उम्र की करीब चार फीसदी युवतियां मां बन जाती हैं। इसका खुलासा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-2016 में हुआ है।
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बाल विवाह एवं महिलाओं की स्थिति को लेकर हुए सर्वे में यह भी पता चला कि कम उम्र में शादी होने के चलते युवतियों को कई तरह की दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। 15 से 19 साल की उम्र में मां बनने वाली 54 फीसदी युवतियों में एनीमिया पाया गया है। वहीं, यूपी में लगभग 30 फीसदी लड़कों की शादी 21 साल से पहले होती है। सर्वे के मुताबिक यूपी में सिर्फ केवल 27.5 फीसदी लड़के और 24.6 फीसदी लड़कियां यौन एवं प्रजनन संबंधी जानकारी हैं। सर्वे में यह बात भी सामने आई कि आर्थिक और स्वास्थ्य से जुड़े मामले में सिर्फ 59.6 फीसदी लोगों से राय ली जाती है।
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नई जनसंख्या नीति में महिलाओं को जागरूक और स्वावलंबी बनाने की तैयारी है। इसके जरिए यह प्रयास किया जाएगा कि विभिन्न मामलों में वर्ष 2026 तक 65 फीसदी और वर्ष 2030 तक 75 फीसदी महिलाएं अपनी राय देने लगें।
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नई जनसंख्या नीति के प्रावधानों का असर पांच साल बाद दिखने लगेगा। हमारा प्रयास है कि 2026 का लक्ष्य हासिल करते हुए आगे बढ़े। इसकी कवायद शुरू हो गई है। महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए स्वास्थ्य कर्मियों के साथ ही शिक्षा, पंचायत सहित विभिन्न विभागों का सहयोग लिया जाएगा।
-डॉ. लिली सिंह, महानिदेशक परिवार कल्याण
जब महिलाएं जागरूक हो जाएंगी, तब गर्भ में कन्याएं नहीं मारी जाएंगी। इसके लिए शिक्षित महिलाओं को आगे आकर अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। बेटियों को शिक्षित कर विभिन्न प्रोफेशन में आगे लाने की जरूरत है। उन्हें यौन सुरक्षा, प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी विकारों और अधिकारों के बारे में जानकारी देनी होगी।
-प्रो. पियाली भट्टाचार्य, एसजीपीजीआई